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झारखंड के आदिवासी शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिर मिलेगी नौकरी, अदालत बोली- बिना कारण नौकरी से हटाना गलत

झारखंड के आदिवासी शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिर मिलेगी नौकरी, अदालत बोली- बिना कारण नौकरी से हटाना गलत

झारखंड के दो इंटरमीडिएट ट्रेन्ड आदिवासी शिक्षकों के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला बड़ी राहत लेकर आया है। कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें इन शिक्षकों की नौकरी खत्म करने को सही बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि राज्य सरकार ने बिना किसी ठोस वजह और कानूनी प्रक्रिया अपनाए इन शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया, जो पूरी तरह से गलत है।

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि नौकरी लगने के महज एक दिन बाद ही सेवा समाप्त करने का आदेश देना बेहद चौंकाने वाला और अन्यायपूर्ण है। अब सभी प्रभावित आदिवासी शिक्षकों की सेवाएं फिर से बहाल होंगी और उन्हें पहले की तरह काम पर रखा जाएगा।

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अब जानिए क्या था पूरा मामला

यह मामला 2015 में शुरू हुआ था, जब धनबाद के जिला शिक्षा अधीक्षक ने पहली से पांचवीं कक्षा तक पढ़ाने के लिए शिक्षकों की बहाली निकाली। बहाली की प्रक्रिया के तहत कुछ उम्मीदवारों को नौकरी मिल गई और वे काम भी करने लगे। लेकिन कुछ महीने बाद, शिक्षा विभाग की ओर से उन्हें नोटिस भेजा गया कि उनके इंटरमीडिएट में 45% से कम अंक हैं. स्नातक डिग्री में भी गड़बड़ी है।

इन शिक्षकों ने जवाब में बताया कि वे अनुसूचित जनजाति (ST) से आते हैं और नियमों के मुताबिक उन्हें अंकों में छूट मिलनी चाहिए, जो कि सरकार की नीति में शामिल है। इसके बावजूद, अक्टूबर 2016 में इनकी नौकरी अचानक खत्म कर दी गई।

इसके बाद उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट में केस किया। पहले सिंगल बेंच ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन बाद में डबल बेंच ने राज्य सरकार के पक्ष में आदेश दे दिया। तब ये शिक्षक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

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फैसले से न केवल बहाली, बल्कि उम्मीद भी मिली

सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ शिक्षकों की सेवा बहाल करने का आदेश दिया, बल्कि राज्य सरकार को यह भी याद दिलाया कि किसी की नौकरी खत्म करने से पहले पूरी प्रक्रिया और नियमों का पालन जरूरी होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बिना सुनवाई और बिना ठोस कारण के इस तरह किसी को हटाना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

इस फैसले से झारखंड के आदिवासी शिक्षकों में खुशी की लहर है। यह फैसला न सिर्फ नौकरी बहाली की जीत है, बल्कि न्याय और अधिकार की भी जीत है। अब बाकी राज्यों और विभागों के लिए भी यह एक सख्त संदेश है कि किसी भी कर्मचारी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।

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