29 हजार सरकारी स्कूलों में हुआ पैरेंट्स-टीचर मीटिंग, 290 स्कूलों में सांसद और 129 में विधायक हुए शामिल, दिसंबर में होगी अगली मीटिंग
झारखंड के सरकारी विद्यालयों में दूसरी अभिभावक-शिक्षक बैठक (पीटीएम) का आयोजन बड़े पैमाने पर किया गया। झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद के अनुसार, राज्य के कुल 29,224 स्कूलों में यह बैठक सफलतापूर्वक संपन्न हुई। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर इस बार जनप्रतिनिधियों को भी स्कूलों में आमंत्रित किया गया था। इसका असर भी दिखा, क्योंकि 290 विद्यालयों में सांसद और 129 विद्यालयों में विधायक शामिल होकर न केवल बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का हाल जाना, बल्कि अभिभावकों से संवाद भी किया।
जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी से बढ़ा उत्साह
इस अभिनव पहल में पहली बार जनप्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी दर्ज हुई। शिक्षा सचिव उमाशंकर सिंह ने कहा कि उनकी उपस्थिति से विद्यालयों में विशेष ऊर्जा और प्रेरणा का संचार हुआ। सांसदों, विधायकों और मंत्रियों ने बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन, परीक्षाफल, उपस्थिति, खेलकूद और विद्यालय के माहौल जैसे मुद्दों पर चर्चा की। सचिव ने इस प्रयास को शिक्षा में सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम बताया।

शिक्षा व्यवस्था को मिली नई दिशा
झारखंड शिक्षा परियोजना निदेशक शशि रंजन ने कहा कि इस विशेष बैठक से शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा मिली है। उन्होंने कहा कि अभिभावक, शिक्षक और समुदाय एक टीम बनकर बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए काम कर रहे हैं। जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी से न केवल बैठक की गरिमा बढ़ी, बल्कि शिक्षकों और अभिभावकों को भी मार्गदर्शन मिला। इससे विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा में ठोस पहल संभव हो सकी।
राज्यस्तरीय मॉनिटरिंग से बढ़ी जवाबदेही
पीटीएम के सफल आयोजन के लिए राज्य स्तर पर मॉनिटरिंग टीम भी गठित की गई थी। इस टीम ने सभी 24 जिलों में जाकर कम से कम दो विद्यालयों में बैठकों का प्रत्यक्ष वेरिफिकेशन किया। इससे पारदर्शिता बढ़ी और यह सुनिश्चित हुआ कि बैठक केवल औपचारिकता न रहे, बल्कि इसका बच्चों की शिक्षा पर वास्तविक असर दिखे।

दिसंबर में होगी अगली बैठक
सरकारी विद्यालयों में अभिभावक-शिक्षक बैठकें त्रैमासिक रूप से आयोजित होती हैं। इस सत्र की दूसरी बैठक अब समाप्त हो चुकी है और तीसरी बैठक दिसंबर में होगी। शिक्षा विभाग ने साफ कहा है कि ऐसी बैठकें नियमित होंगी और इनका मकसद बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ विद्यालय और अभिभावकों के बीच निरंतर संवाद बनाए रखना है। इस पहल से उम्मीद की जा रही है कि बच्चों की उपस्थिति बढ़ेगी, लर्निंग गैप कम होगा और ड्रॉपआउट दर में गिरावट आएगी।