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झारखंड विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को 17 साल से नहीं मिला प्रमोशन, रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक, डीन प्लेसमेंट बनने में हो रही मुश्किल

झारखंड विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को 17 साल से नहीं मिला प्रमोशन, रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक, डीन प्लेसमेंट बनने में हो रही मुश्किल

झारखंड के सरकारी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में कार्यरत शिक्षक अब अपने ही विवि में रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक, डीन प्लेसमेंट व अन्य प्रशासनिक पदों पर जिम्मेदारी नहीं निभा सकेंगे। नई शर्तों के अनुसार इन पदों पर वही उम्मीदवार आवेदन कर सकेंगे, जिन्होंने अकादमिक लेवल-13 या उससे ऊपर की प्रोन्नति पाई हो और जिनकी आयु 60 वर्ष से कम हो। ऐसे में राज्य के अधिकतर शिक्षक इन पदों से वंचित हो जाएंगे।

2008 बैच के शिक्षक अब भी पिछड़े

राज्य के 2008 बैच के शिक्षकों की सीधी नियुक्ति तो हुई, लेकिन 17 साल बाद भी अधिकांश स्टेज-1 से स्टेज-2 तक की प्रोन्नति नहीं पा सके हैं। ऐसे में उनके लिए अकादमिक लेवल 11 से 13 तक पहुंचना कठिन हो गया है। प्रोन्नति प्रक्रिया में देरी और जटिल नियमों के कारण शिक्षकों का करियर अटक गया है। वहीं 1996 से 2008 के बीच नियुक्त शिक्षकों में से कई पहले ही 60 वर्ष की आयु सीमा पार कर चुके हैं, जबकि गैर-शैक्षणिक पदों के लिए अधिकतम आयु 65 वर्ष तय है।

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शिक्षक नेताओं ने उठाई आवाज

शिक्षक संगठनों का कहना है कि जेपीएससी की शर्तें व्यावहारिक नहीं हैं। झारखंड विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के सचिव डॉ. कनिष्क लोचन ने कहा कि अकादमिक लेवल को कम से कम 11 किया जाना चाहिए ताकि 2008 बैच के शिक्षक भी आवेदन कर सकें। उन्होंने सुझाव दिया कि आवेदन की अंतिम तिथि 15 दिन बढ़ाई जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा योग्य शिक्षक इसमें शामिल हो सकें। संगठन का मानना है कि लंबे अनुभव वाले शिक्षकों को नज़रअंदाज़ करना शिक्षा व्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगा।

रिक्तियों पर संकट, योग्य उम्मीदवार कम

झारखंड के विश्वविद्यालयों में कुल 31 प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई है, जिसमें रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक और डीन प्लेसमेंट जैसे महत्वपूर्ण पद शामिल हैं। राज्य के 11 विश्वविद्यालयों और 34 constituent कॉलेजों के लिए 1,44,200 विद्यार्थियों का भविष्य इन पदों की सुचारू जिम्मेदारी पर निर्भर है। लेकिन कठोर शर्तों के चलते योग्य उम्मीदवारों की संख्या बेहद सीमित रह जाएगी। ऐसे में आशंका है कि कई पद रिक्त रह जाएंगे और इसका असर सीधा विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक और प्रशासनिक गतिविधियों पर पड़ेगा।

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