झारखंड हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, नियुक्तियों में विज्ञापन की अंतिम तिथि के बाद बने जाति प्रमाणपत्र नहीं किए जाएंगे स्वीकार
झारखंड हाईकोर्ट की तीन जजों की पीठ ने प्रतियोगिता परीक्षाओं में आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस राजेश शंकर की पीठ ने 44 याचिकाओं पर सुनवाई की। सुनवाई के बाद आदेश दिया कि राज्य की किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में आरक्षण का लाभ केवल वही उम्मीदवार ले सकेंगे, जिनके पास विज्ञापन में तय अंतिम तारीख तक सही प्रारूप में जाति प्रमाणपत्र उपलब्ध होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और ईडब्ल्यूएस के लिए अंतिम तिथि के बाद जारी या अलग प्रारूप के जाति प्रमाणपत्र मान्य नहीं होंगे। ऐसे अभ्यर्थियों को अनारक्षित श्रेणी का माना जाएगा।
सरकार और आयोग को है शर्त तय करने का अधिकार
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि नियुक्ति विज्ञापन में इस तरह की शर्त लगाने का पूरा अधिकार सरकार और आयोग को है। अदालत ने यह भी जोड़ा कि अंतिम तिथि तक प्रमाणपत्र न होने की स्थिति नियमों के खिलाफ मानी जाएगी। जेपीएससी और जेएसएससी ने अदालत में दलील दी थी कि विज्ञापन की शर्तें बाध्यकारी हैं।
इनका पालन हर अभ्यर्थी के लिए अनिवार्य है। इस पर अदालत ने उनकी बात को स्वीकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के रामकुमार गिजरोया मामले का आदेश हर स्थिति पर लागू नहीं होता। राज्य सरकार और भर्ती आयोगों को यह अधिकार है कि वे प्रमाणपत्र का प्रारूप और मानक तय करें।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला खारिज
कई अभ्यर्थियों ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के रामकुमार गिजरोया और कर्ण सिंह यादव मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि प्रमाणपत्र बाद में जमा करने की छूट मिलनी चाहिए। उनका कहना था कि वे जन्म से ही आरक्षित वर्ग से आते हैं, इसलिए अगर प्रमाणपत्र अंतिम तिथि के बाद भी प्रस्तुत किया जाए तो उसे मान्य माना जाना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि यह तर्क सही नहीं है और प्रमाणपत्र की समयसीमा का पालन करना जरूरी है।
उम्मीदवारों की दलीलें नहीं मानी गईं
दरअसल, कई उम्मीदवारों ने जेपीएससी और जेएसएससी की विभिन्न भर्तियों में आरक्षित कोटे से आवेदन किया था। लेकिन उनके पास अंतिम तारीख तक निर्धारित प्रारूप में जाति प्रमाणपत्र नहीं था। कागजात जांच के दौरान उन्होंने प्रमाणपत्र जमा किया, लेकिन आयोग ने आरक्षण का लाभ देने से इनकार कर दिया।
इसके बाद अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका कहना था कि आयोग नियुक्ति के विज्ञापन की तिथि तक प्रमाणपत्र को अनिवार्य नहीं कर सकता। हालांकि पीठ ने यह साफ कर दिया कि नियम वही मान्य होंगे जो विज्ञापन में दिए गए हैं और उम्मीदवारों को उसी के अनुरूप चलना होगा।