झारखंड में पहली बार बन रही लैंग्वेज पॉलिसी, 10वीं तक मातृभाषा में पढ़ाई की तैयारी
झारखंड सरकार अब बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाई कराने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रही है। सरकार की योजना है कि कम से कम 10वीं कक्षा तक के बच्चों को उनकी अपनी भाषा में शिक्षा दी जाए। इस नीति का मकसद है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में बेहतर तरीके से समझ सकें और सीख सकें।
फिलहाल राज्य के सिर्फ 1045 स्कूलों में पांच जनजातीय भाषाओं में प्रारंभिक शिक्षा दी जा रही है, लेकिन झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद (JEPC) का लक्ष्य है कि आने वाले समय में राज्य के सभी 35 हजार सरकारी स्कूलों में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई शुरू की जाए।
अप्रैल 2025 से अनिवार्य होगी टीआरएल में पढ़ाई
राज्य सरकार ने अप्रैल 2025 से सभी सरकारी स्कूलों में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई को अनिवार्य करने का निर्णय लिया है। इसके तहत उन स्कूलों में जहां 70% सेअधिक बच्चे किसी खास जनजातीय भाषा में बात करते हैं, वहां उसी भाषा में पढ़ाई कराई जाएगी। इस पहल के लिए सरकार संबंधित भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति भी करेगी।
भाषा नीति तैयार करने के लिए पश्चिम बंगाल के शैक्षणिक मॉडल का अध्ययन किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि जून 2025 में झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (JTET) की नई नियमावली को लेकर भाषा विवाद हुआ था, क्योंकि कई जिलों में बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषाओं को इसमें शामिल नहीं किया गया था।
पोषक क्षेत्रों का सर्वे कराई जाएगी सरकार
राज्य सरकार अब स्कूलों के पोषक क्षेत्रों का सर्वेक्षण कराने जा रही है। इस सर्वे से यह पता लगाया जाएगा कि किस इलाके में कौन-सी भाषा बोलने वाले छात्र अधिक हैं। इसी आधार पर संबंधित स्कूलों में शिक्षण की भाषा तय की जाएगी। सोमवार को इस विषय पर एक अहम बैठक बुलाई गई है जिसमें यूनिसेफ, एनसीईआरटी और अन्य शैक्षणिक संस्थाओं के विशेषज्ञ शामिल होंगे। इन विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर राज्य की नई भाषा नीति को अंतिम रूप दिया जाएगा।
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बच्चों की समझ बढ़ाने में मददगार होगी मातृभाषा में पढ़ाई
JEPC के एसपीडी शशि रंजन ने बताया कि भाषा नीति बनाना बहुत जरूरी है क्योंकि झारखंड में बच्चे घर पर जनजातीय या क्षेत्रीय भाषा में बात करते हैं, लेकिन स्कूल में हिंदी में पढ़ाई करनी पड़ती है। इससे उनकी सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। मातृभाषा में पढ़ाई होने से बच्चे न केवल जल्दी समझ पाएंगे बल्कि उनकी बुनियाद भी मजबूत होगी। सरकार का मानना है कि यह कदम न सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाएगा बल्कि जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण में भी मदद करेगा।
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