700 शिक्षा प्रेरकों ने 38 लाख वयस्कों को बनाया साक्षर, अब 7 साल से मानेदय के अटके 4 करोड़ का कर रहे इंतजार
साक्षर भारत मिशन के अंतर्गत राज्य के विभिन्न जिलों में कार्यरत शिक्षा प्रेरकों ने लगभग 38 लाख वयस्क लोगों को साक्षर बनाया। इनकी संख्या करीब 700 के आसपास है। योजना वर्ष 2009 में शुरू हुई थी और 2018 में समाप्त हो गई। लेकिन इन शिक्षा प्रेरकों को उनका मानदेय आज तक पूरा नहीं मिल पाया है।
करीब 4 करोड़ रुपए पिछले 7 वर्षों से बकाया हैं। मिशन केंद्र सरकार की योजना थी, इसलिए भुगतान की जिम्मेदारी भी केंद्र पर ही थी। इस बीच राज्य सरकार ने कई बार केंद्र को पत्र लिखकर भुगतान की मांग की। कुछ राशि मिली भी, जिससे आंशिक भुगतान हुआ, लेकिन अब भी सैकड़ों शिक्षा प्रेरकों को उनका मेहनताना नहीं मिला है।
केंद्र सरकार को कई बार पत्र भेजा, फिर देंगे रिमाइंडर
शिक्षा सचिव उमाशंकर सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार को कई बार पत्र भेजा गया है। हाल के महीनों में भी रिमाइंडर भेजे गए। केंद्र ने जो भी दस्तावेज, क्वेरी या उपयोगिता प्रमाण पत्र मांगा, राज्य ने उपलब्ध करा दिया। इसके बावजूद अब तक भुगतान लंबित है।
उन्होंने कहा कि अगले सप्ताह एक और रिमाइंडर भेजा जाएगा। अगर केंद्र सरकार राशि जारी करने से इनकार करती है, तो राज्य सरकार स्वयं भुगतान करने पर विचार करेगी। इसके लिए कैबिनेट की स्वीकृति ली जाएगी और प्रस्ताव में केंद्र के इनकार का उल्लेख भी होगा।
नई योजना से उम्मीद, पर पुराने बकाए पर संशय
साक्षर भारत मिशन खत्म होने के बाद अब झारखंड में 2022 से नवभारत साक्षरता कार्यक्रम लागू हुआ है। इसका लक्ष्य 2030 तक 15 वर्ष से अधिक आयु के सभी पुरुषों और महिलाओं को साक्षर बनाना है। मिशन का उद्देश्य शिक्षा के दायरे से बाहर रहे लोगों को जोड़ना है।
लेकिन पुराने शिक्षा प्रेरकों के सामने अभी भी बकाया भुगतान की समस्या बनी हुई है। राज्य सरकार कह रही है कि यदि केंद्र सहयोग नहीं करता तो वह खुद इस मामले में कदम उठाएगी, लेकिन प्रेरक इसे लेकर असमंजस में हैं।
धनबाद के शिक्षा प्रेरकों का सबसे ज्यादा बकाया
झारखंड के लगभग सभी जिलों में शिक्षा प्रेरकों का मानदेय बकाया है। इनमें धनबाद सबसे आगे है, जहां करीब 1.9 करोड़ रुपए लंबित हैं। विभिन्न प्रखंडों में कार्यरत शिक्षा प्रेरकों ने वयस्क साक्षरता अभियान में बड़ी भूमिका निभाई थी।
उस समय उन्हें सिर्फ 2 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय दिया जाता था। अब इतने वर्षों बाद भी बकाया भुगतान न होने से वे निराश और आक्रोशित हैं। शिक्षा प्रेरकों का कहना है कि सरकार को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि उनका वर्षों पुराना हक उन्हें मिल सके।
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