संकट में है चक्रधरपुर का एकमात्र JLN डिग्री कॉलेज, पांच साल से बंद है मेन गेट, 4894 स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे सात शिक्षक
चक्रधरपुर शहर का एकमात्र डिग्री कॉलेज, जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय, इस समय गहरे संकट से गुजर रहा है। महज सात नियमित शिक्षकों के भरोसे 4894 विद्यार्थियों की पढ़ाई हो रही है। फिजिक्स, मैथमेटिक्स, इंग्लिश, उर्दू, इकोनॉमिक्स, पॉलिटिकल साइंस, हो और कुड़माली जैसे आठ प्रमुख विषयों में शिक्षक ही नहीं हैं। सरकारी डिग्री कॉलेज होने के कारण यहां मुख्य रूप से सुदूरवर्ती क्षेत्रों और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के विद्यार्थी दाखिला लेते हैं। लेकिन शिक्षकों की भारी कमी ने उनके भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यूजी-पीजी विद्यार्थियों पर असर
यूजी स्तर पर नामांकन लगातार बढ़ा है, लेकिन शिक्षकों की संख्या नगण्य है। सत्र 2019-20 में 5556, सत्र 2020-21 में 4822, सत्र 2021-22 में 5343 विद्यार्थी पास हुए और वर्तमान सत्र 2022-23 में 4894 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। इसी तरह पीजी सत्र 2024-26 में हिंदी में 108, इतिहास में 105, इकोनॉमिक्स में 42, पॉलिटिकल साइंस में 59 और एकाउंट्स में 56 यानी कुल 370 विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं। मगर प्रमुख विषयों में अध्यापक नहीं होने से इन सभी को अध्ययन में कठिनाई झेलनी पड़ रही है। प्रिंसिपल डॉ. श्रीनिवास कुमार का कहना है कि सात शिक्षकों में कॉलेज को संचालित करना बेहद मुश्किल है।

स्टाफ सीमित, जिम्मेदारी भारी, नियुक्ति का इंतजार
कॉलेज में सात रेगुलर और सात नन-टीचिंग स्टाफ के अलावा केवल दो वोकेशनल टीचर, तीन गेस्ट फैकल्टी और 12 आउटसोर्सिंग स्टाफ हैं। प्रिंसिपल सह हिंदी शिक्षक डॉ. श्रीनिवास कुमार, डॉ. हरहर प्रधान और प्रो. संजय कुमार बारिक (ओड़िया), प्रो. आदित्य कुमार (दर्शनशास्त्र), प्रो. मोहम्मद नज़रुल इस्लाम (केमिस्ट्री), प्रो. शाश्वती कुमारी (कॉमर्स) और प्रो. मरियनला हांसदा (इतिहास) सात नियमित शिक्षक हैं। नन-टीचिंग स्टाफ में पंकज कुमार प्रधान (प्रधान लिपिक), काकुली षाड़ंगी (अकाउंटेंट) सहित सात लोग हैं। गेस्ट फैकल्टी में रेणुका मुर्मू, राजेश कुमार यादव और मालती, जबकि आउटसोर्सिंग स्टाफ में 12 कर्मी तैनात हैं।
राजमहल में चल रहा कॉलेज, देखभाल का कर रहा इंतजार
इस कॉलेज का एक और दर्द है कि यह चक्रधरपुर के ऐतिहासिक राजमहल से संचालित होता है। महल का मुख्य द्वार और पुरानी बाउंड्री आज भी मौजूद हैं, लेकिन उनकी हालत खस्ता है। राजा के जमाने के विशाल दरवाजे पांच साल से बंद पड़े हैं। इनके मरम्मत का वादा अधूरा है। छात्रों को मजबूरन पीछे के रास्ते से आना-जाना पड़ता है। प्रिंसिपल प्रो. (डॉ.) जनार्दन नंदन ने बताया कि विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर धरोहर संरक्षित करने का आग्रह किया गया है, मगर कॉलेज खुद कुछ नहीं कर सकता क्योंकि यह विश्वविद्यालय के अधीन है।

चक्रधरपुर की पहचान है डिग्री कॉलेज
कॉलेज प्रशासन और विद्यार्थी दोनों की मांग है कि सरकार और विश्वविद्यालय जल्द ठोस कदम उठाएं। जहां एक ओर शिक्षकों की भारी कमी से विद्यार्थियों की पढ़ाई अधर में है, वहीं दूसरी ओर ऐतिहासिक राजमहल का मुख्य द्वार उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। यह धरोहर चक्रधरपुर की पहचान है। इसका संरक्षण भविष्य की पीढ़ियों के लिए जरूरी है। विद्यार्थियों का कहना है कि अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो न केवल उनका शैक्षिक भविष्य बल्कि शहर की ऐतिहासिक धरोहर भी मिटने के कगार पर पहुंच जाएगी।
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