किताब-पेंसिल जितना जरूरी हो गया है कंप्यूटर, पर शिक्षक की भूमिका कभी कम नहीं होगी….AI को सहायक के रूप में देखें, विकल्प नहीं
जैसे किताब और पेंसिल शिक्षा का बुनियादी हिस्सा हैं, वैसे ही अब कंप्यूटिंग भी है। इसकी पहुंच को भी अनिवार्य माना जाना चाहिए। अगर हम अभी निवेश नहीं करते, तो आने वाली पीढ़ी को “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग” के लिए तैयार करना मुश्किल हो जाएगा।
आज भी हमारे ज्यादातर स्कूल पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। एक शिक्षक पूरी क्लास को पढ़ा रहे हैं। बच्चे नोट्स बना रहे हैं। आखिर में सबकुछ अंकों और ग्रेड तक सिमट जाता है। लेकिन अब दुनिया बदल रही है। अब शिक्षा को समस्या हल करने, सहयोग करने और सोचने-समझने की क्षमता पर केंद्रित करना होगा।
हर बच्चे तक कंप्यूटिंग की हो पहुंच
कंप्यूटर को सिर्फ मशीन मत समझिए, यह तो बच्चों का निजी शिक्षक, कोच और गाइड बन सकता है। इसलिए लक्ष्य होना चाहिए कि धीरे-धीरे हर बच्चे तक व्यक्तिगत कंप्यूटिंग पहुंचे। अभी बहुत-से स्कूलों में तो एक कंप्यूटर तक नहीं है। ऐसे में सबसे पहले जरूरी है कि कम से कम 15 बच्चों पर 1 कंप्यूटर उपलब्ध हो। आने वाले वर्षों में यह अनुपात 1:1 तक पहुंचे।
सस्ते लैपटॉप और टैबलेट्स से यह संभव भी है। जैसे कभी टीवी हर घर में पहुंच गया था, वैसे ही कंप्यूटर भी आम हो जाएगा, बस लोगों को इसकी असली उपयोगिता समझनी होगी।
स्क्रीन टाइम और माता-पिता की चिंता का समाधान
बेशक, अभिभावकों को यह चिंता रहती है कि ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों के लिए नुकसानदेह है। तकनीक को इस तरह तैयार किया जा रहा है कि पढ़ाई के दौरान बच्चे फोकस्ड रहें। उदाहरण के लिए, “PiFocus” जैसे ऐप्स में पेरेंटल कंट्रोल, स्क्रीन टाइम लिमिट और कंटेंट ब्लॉक जैसी सुविधाएं हैं।
शिक्षा में तकनीक को शामिल करने से शिक्षक की भूमिका कभी कम नहीं होगी। एआई को सहायक के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि विकल्प के रूप में। उदाहरण के लिए, कॉपी जांचना, प्रश्न बैंक बनाना या रोज़मर्रा की शंकाओं का हल निकालना जैसे काम एआई कर सकता है, ताकि शिक्षक बच्चों के साथ ज्यादा गहराई से जुड़ सकें।
2030 का सपना
2030 के बारे सोचें, जब हर बच्चा न सिर्फ किताबों से, बल्कि कंप्यूटर और एआई की मदद से पढ़ेगा। तब शिक्षा ज्यादा व्यक्तिगत होगी। हर बच्चे की जरूरत और गति के मुताबिक। शिक्षक सिर्फ जानकारी देने वाले नहीं, बल्कि सच्चे मार्गदर्शक की भूमिका निभाएंगे।
“राइट टू कंप्यूट” यानी कंप्यूटिंग तक पहुंच हर बच्चे का अधिकार होना चाहिए। अगर यह सपना पूरा होता है, तो आने वाली पीढ़ी सिर्फ परीक्षा पास करने वाली मशीन नहीं, बल्कि रचनात्मक, संवेदनशील और सहयोगी इंसान बनकर उभरेगी।
यह आलेख हिंदुस्तान टाइम्स से लिया गया है। इसे इंटेल इंडिया के प्रबंध निदेशक संतोष विश्वनाथन ने लिखा है। यहां उनके आलेख का भावानुवाद लिया गया है।
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