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रांची विश्वविद्यालय में होगी नियुक्तियां, JPSC अक्टूबर तक निकालेगा प्रोफेसर भर्ती का विज्ञापन, JSSC करेगा कर्मचारियों की बहाली

रांची विश्वविद्यालय में होगी नियुक्तियां, JPSC अक्टूबर तक निकालेगा प्रोफेसर भर्ती का विज्ञापन, JSSC करेगा कर्मचारियों की बहाली

झारखंड हाईकोर्ट ने रांची विश्वविद्यालय में नियुक्तियों से जुड़ी अधियाचनाओं को लेकर गंभीर रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान विश्वविद्यालय से यह स्पष्ट करने को कहा कि शिक्षकेतर कर्मियों की नियुक्ति की अधियाचना झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) को क्यों नहीं भेजी गई। कोर्ट ने इस पर लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 25 सितंबर तय की। अदालत ने टिप्पणी की कि नियुक्ति प्रक्रिया में अनावश्यक देरी से बचने के लिए अधियाचनाएं समय पर भेजना जरूरी है।

431 नियमित और 37 बैकलॉग पदों पर होगी नियुक्ति

सुनवाई के दौरान झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की ओर से अधिवक्ता अभय प्रकाश ने जानकारी दी कि रांची विश्वविद्यालय से आयोग को अधियाचना प्राप्त हुई है। इसमें कुल 431 नियमित पदों और 37 बैकलॉग पदों पर असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति की मांग की गई है।

अधिवक्ता ने खंडपीठ को आश्वस्त किया कि चयन प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी पूरी कर ली गई है। आयोग सितंबर के अंतिम सप्ताह या फिर अक्टूबर के पहले सप्ताह में विज्ञापन प्रकाशित करेगा। इसके लिए उम्मीदवारों को आधिकारिक वेबसाइट jpsc.gov.in पर नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा।

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JSSC ने दी सफाई, विश्वविद्यालय से नहीं मिली अधियाचना

सुनवाई के दौरान झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरावाल ने शपथ पत्र दायर किया। उन्होंने बताया कि तृतीय वर्ग के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए अभी तक रांची विश्वविद्यालय से कोई अधियाचना प्राप्त नहीं हुई है। ऐसे में आयोग चयन प्रक्रिया शुरू नहीं कर सका है। अधिवक्ता ने कहा कि जैसे ही अधियाचना प्राप्त होगी, उसके आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।

विश्वविद्यालय ने रखी अपनी दलील

रांची विश्वविद्यालय की ओर से अधिवक्ता अनूप कुमार मेहता ने बहस की और विश्वविद्यालय की स्थिति कोर्ट के सामने रखी। उन्होंने नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े बिंदुओं की जानकारी दी। हालांकि, खंडपीठ ने स्पष्ट कर दिया कि विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी है कि अधियाचनाएं सही समय पर संबंधित आयोगों को भेजी जाएं। अदालत ने कहा कि समय पर पहल नहीं होने से न केवल चयन प्रक्रिया में देरी होती है, बल्कि छात्रों और शिक्षकों दोनों को इसका खामियाजा उठाना पड़ता है। अदालत ने इस मामले को गंभीर मानते हुए अगली सुनवाई पर विस्तृत जवाब मांगा है।

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