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अक्टूबर से शुरू होगा राज्य में हैबिटेशन मैपिंग, हर घर शिक्षक पहुंच कर लेंगे स्टूडेंट़्स की जानकारी

झारखंड में समग्र शिक्षा की वार्षिक कार्य योजना और बजट (2026-27) तैयार करने की कवायद शुरू हो गई है। इसके लिए राज्य सरकार ने शिशु पंजी अद्यतीकरण का काम अक्टूबर से कराने का फैसला लिया है। इससे पहले पूरे राज्य में हैबिटेशन मैपिंग की जाएगी। इसके लिए झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद की ओर से सभी जिलों को पत्र भेजा गया है। निर्देश के मुताबिक प्रारम्भिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षा वाले सभी सरकारी विद्यालयों के शिक्षक-शिक्षिकाओं को सर्वे करना होगा। यही नहीं, गैर सरकारी सहायता प्राप्त, अल्पसंख्यक स्कूलों, संस्कृत विद्यालयों और मदरसा के शिक्षकों को भी इसमें जोड़ा गया है। हर गांव और टोला को नजदीकी स्कूल से टैग कर दिया जाएगा, ताकि कोई घर सर्वे से वंचित न रहे।

बीईईओ और बीपीओ करेंगे मॉनिटरिंग

प्रखंड स्तरीय पदाधिकारियों को भी जिम्मेदारी दी गई है। बीईईओ, बीपीओ और अवर विद्यालय निरीक्षक अपनी देखरेख में बीआरपी और सीआरपी के सहयोग से विद्यालयों को गांव और टोला से टैग करेंगे। फिर संबंधित विद्यालय के प्रधानाध्यापक और सीआरपी अपने-अपने शिक्षकों को घर-घर सर्वे की जिम्मेदारी देंगे। सर्वे में किसी भी तरह की ओवरलैपिंग या लापरवाही पर कार्रवाई की जाएगी। इस बार टोला टैगिंग स्कूल खोलने के मापदंड के आधार पर नहीं होगी। घर-घर सर्वे और शिशु पंजी अद्यतन के लिए टैगिंग घरों की संख्या और विद्यालय में शिक्षकों की संख्या को देखकर की जाएगी। इससे काम तेजी से पूरा किया जा सकेगा।

गैर सरकारी स्कूलों से भी मिलेगी मदद

सरकारी विद्यालय के प्रधानाध्यापक अपने नजदीकी गैर सरकारी सहायता प्राप्त या अल्पसंख्यक विद्यालयों के शिक्षकों से सहयोग ले सकेंगे। हालांकि अंतिम रूप से रिपोर्ट बनाने का काम सरकारी शिक्षकों के जिम्मे ही होगा। इसके लिए बीईईओ और अवर विद्यालय निरीक्षक गैर सरकारी स्कूलों को सरकारी स्कूलों के साथ टैग करना सुनिश्चित करेंगे।
रजिस्टर अपडेट करने के लिए शिक्षकों और अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से 12 सितंबर को वर्चुअल राज्यस्तरीय ओरिएंटेशन कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इसमें सभी जिलों के बीईईओ, बीपीओ, एमआईएस व डाटा एंट्री ऑपरेटर, बीआरपी, सीआरपी और आउट ऑफ स्कूल प्रभारी शामिल होंगे।

क्या है हैबिटेशन मैपिंग

हैबिटेशन मैपिंग का मतलब है – किसी भी गांव या टोला को एक स्कूल से टैग करना। इसके जरिए यह तय किया जाता है कि किस विद्यालय के शिक्षक वहां घर-घर जाकर सर्वे करेंगे। उद्देश्य है 3 से 18 साल तक के बच्चों का वास्तविक डाटा जुटाना, ताकि नामांकन, ड्रॉप आउट और अनामांकित बच्चों की सटीक संख्या सामने आ सके।

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